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स्वाधीनता
स्वाधीनता क्या है?
स्वाधीनता है केवल भगवान् पर निर्भर रहना । २८ मार्च, १९३२
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अगर तुम्हारे अन्दर बलवान् और सचेतन संकल्प-शक्ति है और तुम्हारा संकल्प चैत्य पुरुष के इर्द-गिर्द केन्द्रित है तो तुम स्वाधीनता का रस पा सकते हो । अन्यथा तुम सभी बाहरी प्रभावों के दास रहते हो । २४ अगस्त, १९५५
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२०८ स्वाधीनता बाहरी परिस्थितियों से नहीं, आन्तरिक मुक्ति से आती है । अपनी अन्तरात्मा को खोजो उसके साथ एक होओ, उसे अपने जीवन पर शासन करने दो तो तुम स्वाधीन हो जाओगे ।
आशीर्वाद ।
३१ अगस्त, १९६६
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स्वाधीनता है केवल वही करना जो 'परम चेतना' हमसे करवाये । और सभी हालतों में आदमी दास होता है, चाहे औरों की इच्छा का दास हो या परिपाटियों का, नैतिक विधानों का हो या प्राणिक आवेगों का, या मानसिक सनकों का, या फिर इन सबसे बढ़कर 'अहंकार' की कामनाओं का । २१ सितम्बर, १९६९
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स्वाधीनता का अर्थ अव्यवस्था और अस्तव्यस्तता से कहीं अलग है । हमारे अन्दर आन्तरिक स्वाधीनता होनी चाहिये, और अगर वह हमारे पास हो तो उसे कोई हमसे छीन नहीं सकता ।
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सच्ची स्वाधीनता केवल वही होती है जो भागवत ऐक्य के द्वारा प्राप्त होती है ।
तुम भगवान् के साथ केवल तभी एक हो सकते हो जब तुम अहं पर प्रभुत्व पा लो । २६ जुलाई, १९७१
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मुक्ति : अहं का लोप ।
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